
http://www.games2win.com/en/arcade/arcade_stock_market_suicide.asp
गेम का नाम है 'स्टाक मार्केट सुसाइड'। इसमें मनमोहन सिंह और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम एक जाल लेकर खड़े हैं और शेयर बाजार के औंधे मुंह गिरने से बर्बाद हुए लोग ऊपर से कूद कर आत्महत्या कर रहे हैं। आत्महत्या करने वाले इन लोगों की तस्वीर खुद-ब-खुद हालात की भयावहता बयां कर देती है।

यकीन जानिए इस सरकार की गलत नीतियों के कारण बड़ी संख्या में लोगों ने आत्महत्याएं की हैं। क्या अमीर और क्या गरीब। सभी परेशान हैं। चलिए शुरूआत आर्थिक नीतियों से करते हैं। सभी जानते हैं कि यूपीए सरकार में दिग्गज अर्थशास्त्रियों का पूरा का पूरा कुनबा शामिल था। लेकिन क्या किया इन्होंने?
अटल जी ने बेहद अच्छी आर्थिक बुनियाद इन्हें विरासत में सौंपी थी, यह सभी जानते हैं। इसका इस्तेमाल राजकोषीय स्थिति को मजबूत बनाने के लिए करना चाहिए। यह ठीक वैसा ही है जैसे कि हम अच्छे वक्त में कुछ पैसा जोड़कर रखते हैं ताकि बुरे वक्त में काम आ सके। लेकिन सरकार को तो अय्याशी करनी थी ना, सो उन्होंने जम कर की। जहां खर्च नहीं करना था वहां किया और जहां करना था वहां रोक दिया गया।
अटल जी के समय में राजमार्गों के विकास के लिए महत्वाकांक्षी योजना की शुरूआत हुई। बहुत तेजी से काम भी हुआ। विरोधी भी इस बात को मानते हैं। लेकिन मनमोहन जी ने तो आक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज में पढ़ाई की है न। उनकी समझ कहती थी कि सड़क बनाने से देश को नहीं सिर्फ अटल बिहारी को फायदा होगा। सो सड़क बनाने का काम रोक दिया गया।
निश्चित तौर से इस सरकार ने आम आदमी के लिए कुछ अच्छी योजनाऒं की शुरुआत की है, लेकिन बकौल चुनाव विश्लेषक योगेन्द्र यादव यह सरकार अपनी ही बनाई योजनाऒं के प्रति पूरी तरह से निष्क्रिय रही है। रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) की असफलता अब जगजाहिर हो चुकी है। अरबों रुपये की लूटखसोट के सिवाए कुछ नहीं है नरेगा।
एक परिवार के सिर्फ एक व्यक्ति को रोजगार मिला वो भी केवल सौ दिन के लिए। ग्रामीण विकास मंत्रालय की रिर्पोट के मुताबिक नरेगा के तहत ५० रुपये तक की दैनिक मजदूरी दी जा रही है। जरा सोचिए ऐसे समय में जबकि गांवों में भी मजदूर ७० रुपये से नीचे नहीं मिलते हैं, कोई भला ५० रुपये लेकर दिन भर क्यों खटेगा।
और हां, बनी सी बात है कि इस ५० रुपये में से भी १०-५ तो सरकारी बाबू की जेब में जाने ही हैं। ५० रुपये की मजदूरी का मतलब है कि नरेगा के तहत किसी को काम दिया ही नहीं जा रहा है, क्योंकि इतनी कम मजदूरी में कोई काम करेगा ही नहीं। सिर्फ भ्रष्टाचार का दूसरा नाम बनकर रह गया है नरेगा।
कल बात करेंगे कृषि ऋण माफी और छूट योजना २००८ की, जो हमारे किसानों को सिर्फ और सिर्फ पंगु, जी हां, पंगु बनाने के लिए लाई गई है।
- अमित पाण्डेय